कब मिलेगा मेघनगर को दूषित पानी,ज़हरीली गैस और केमिकल से छुटकारा-क्या प्रशासन है,भोपाल जैसी त्रासदी के इंतजार में..???
@मुकेश परमार -(भीलीभाषा )
प्रदूषित पानी-हवा से मुक्ति दिलाएं-आबादी के हर तीसरे घर में कोई न कोई दमे का शिकार-व्याप्त है जनता में काफी रोष …..
झाबुआ/इंदौर। मेघनगर क्षेत्र में कुल 9 केमिकल फैक्ट्रियां संचालित हो रही है । मजेदार बात तो यह है की समीपी राज्य गुजरात से आमजन के जान-मॉल को बेहद गंभीर खतरा होने की वजह से,गुजरात से इन फैक्ट्रियो को खदेड़ा था। सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद जनहित में इनको गुजरात में प्रतिबंधित कर दिया गया था। वहां से कारखाने मेघनगर में आ गए। इन पर रोक यहां पर भी है,लेकिन शासन-प्रशासन घूस खा कर जनता को काल के गाल में डाले हुए हैं। वे बड़ी आसानी से नाम मात्र का नजराना पेश कर,हमारे छोटे से आदिवासी जिले के लोगो की जान से खेलने की पूरी आजादी लेक़र केमिकल फैक्ट्रिया बेखौफ संचालित क़र रहे है। आपको बता दे कि इन फैक्ट्रियो में विभिन्न खतरनाक रासायनिक प्रोडक्ट्स डाय इंटरमीडिएट और ब्रोमीन का उत्पाद धड्ड्ले से किया जा रहा है। इनका दूषित जहरीला पानी का स्त्राव नालियों से बहते हुए गारिया नाला और रेलवे क्रासिंग के नाले में मिल जाता है । गौरतलब है कि 19 हजार की आबादी शुद्ध हवा और पानी के लिए जूझ रही है। हर तीसरे घर में कोई न कोई दमे का शिकार है, ये आबादी शहरी है। आस-पास के गांवों की करीब10 हजार जनसंख्या सांस तो ठीक से ले रही पर जहरीले केमिकल मिले पानी को पी रही है। गंभीर बात तो यह है कि उपरोक्त शिकायते विभिन्न सामाजिक संघठनो,राजनैतिक नेताओ और मीडिया के द्वारा पिछले कुछ वर्षो से लगातार प्रशासन के संज्ञान में लाने के बाद भी,प्रशासन कुम्भकर्णीय निद्रा में बेफिक्र होकर,किसी बड़े हादसे का इंतजार तो नहीं क़र रहा है….?
एकत्र किए थे कथित उत्सर्जन की जांच के लिए मिट्टी और पानी के नमूने ………….
गत वर्ष प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-पीसीबी ने कारखानों से खतरनाक रसायनों के कथित उत्सर्जन की जांच के लिए मिट्टी और पानी के नमूने एकत्र किए थे। तब कहा गया था कि यह नमूने रासायनिक संदूषण से उत्पन्न संभावित जोखिमों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे और प्रभावी उपचार रणनीति तैयार करने में भी मदद करेंगे। इस टीम के साथ एसडीएम, तहसीलदार, मेघनगर थाना प्रभारी और एमपीआईडीसी अधिकारियों ने औद्योगिक क्षेत्र में रसायन बनाने वाली आधा दर्जन फैक्ट्रियों का भौतिक निरीक्षण किया था। निरीक्षण का उद्देश्य किसी भी संभावित खतरे की पहचान करना और औद्योगिक मानकों के समग्र पालन का आकलन करना था।
विरोध में चक्का जाम कर दिया था……………..
आपको बता दे की गत वर्ष 9 दिसंबर को गरिया नाले के पास जानवरो की मौत के बाद मेघनगर और उसके आसपास के गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों ने विरोध में चक्का जाम कर दिया था। ग्रामीणों को दावा था कि जानवर गारिया नाले में बह रहे जहरीले पानी को पीने से ही मर गए थे। ग्रामीणों ने जल स्रोत को और अधिक प्रदूषित होने से रोकने के लिए अधिकारियों से तत्काल कार्रवाई की मांग भी की थी। ग्रामीणों ने बताया कि हमने जिला कलेक्टर को अवगत कराया था,लेकिन इस समस्या का हल अभी तक सरकार नहीं निकाल पायी हैं। हम ग्रामीणों और हमारे पशुओं को मौत के मुंह में डाला जा रहा हैं।
व्याप्त है जनता में काफी रोष ……………….
भाजपा के जिला अध्यक्ष भानु भूरिया ने प्रशासन को अल्टीमेटम देते हुए मेघनगर में पानी को प्रदूषित करने वाली फैक्ट्रियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की थी। गरिया नाले में गाय की मौत के बाद ग्रामीणों में आक्रोश भड़क गया था। अधिकारियों की मौजूदगी में फैक्ट्री प्रबंधकों से भिड़ते हुए भूरिया ने एसडीएम सोनी को चेतावनी दी थी कि अगर सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए तो सात दिनों के भीतर पूरे जिले में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। इसके बाद भी हालात जस के तस ही बने हुए है। स्थानीय नेताओं और सरकार के इस रवैये से जनता में काफी रोष व्याप्त है।
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बेहद मजबूर है,आरो पानी के जार-केन मंगवाने हेतु ……………….
शिकायतों और आंदोलन के बाद मप्र प्रदुषण बोर्ड की टीम मात्र शायद दिखावे हेतु आनन-फानन में आकर पानी के सैंपल लेकर जाँच आने तक मात्र फैक्ट्री मालिकों को नोटिस जारी कर अपने कार्य से इतिश्री क़र जल्द से जल्द निकलने की फ़िराक में अपने मुख्यालय पहुंच जाते है। जबकि इन रासयनिक इकाइयों से का जहरीला पानी,घुटन वाली दुर्गन्ध युक्त धुए व गैस से रहवासियों व मवशियो का स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। इस प्रदूषित पानी का अनास नदी में मिलने के कारण मेघनगर की पेयजल सप्लाई सम्पूर्ण रूप से बंद भी क़र दी जाती है। उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षों से क्षेत्र के लोगो तो ठीक,हर शासकीय कार्यालय और अधिकारियों को शासन के पेयजल पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है। साफ स्पष्ट है कि आमजन, हर शासकीय कार्यालय और अधिकारी प्रतिदिन पानी के जार-केन मंगवा क़र,अपनी पेयजल की पूर्ति क़र रहे है। अपने आप को सुरक्षित करने हेतु न चाहते हुए भी लोग बेहद मजबूर है।
बने हुए है आज तक हालात जस के तस ही ………………..
एमपीआईडीसी ने भी शायद लगभग 4 माह पूर्व मात्र दिखावे हेतु सीईपीटी यूनिट का निर्माण कर अपने कार्य से इतिश्री कर ली है। आपको बता दे कि इसकी सदयस्ता सभी ऐसी रासयनिक इकाईयो ने सर्व सम्मति से 4 रूपये प्रति लीटर शुल्क अदा करने पर अपनी लिखित में सहमति देकर ली है। देखा जा रहा है कि अधिकतर रासयनिक इकाइयां अपने क्षणिक फायदे के चलते सीईपीटी यूनिट तक अपना प्रदूषित पानी आज तक फ़िल्टर हेतु नहीं भेज रहे है और लोगो की जान माल से खुले आम खिलवाड़ कर रहे है। जिसकी और देखने वाला कोई भी सक्षम अधिकारी शायद नहीं है या यह भी कह सकते है कि इनका जमीर किसी बड़े हादसे के बाद जागेगा भी या नहीं….? यह तो वे ही बेहतर जानते है। आपको बता दे कि गत 25 सितम्बर 2024 को क्षेत्रवासियों ने उग्र धरना प्रदर्शन भी किया था,फिर भी आज तक हालात जस के तस ही बने हुए है।
प्रशासन के कई पत्र सिर्फ फाइलों में कैद होकर रह गए……………
ऐसा नहीं है कि स्थानीय प्रशासन ने समय-समय पर उक्त आशय के पत्र एमपीआईडीसी और मप्र प्रदूषण बोर्ड को जारी नहीं किये है,जिसकी प्रतिलिपि उन्होंने अपने उच्चतर अधिकारी जिले की मुखिया को भी भेजी ही होगी। जब जिले की मुखिया इस मामले में कुछ नहीं कर पायी है,तो स्थानीय अधिकारी को तो उपरोक्त दोनों स्वतंत्र विभाग तो,क्या तवज्जो देते होंगे…..? यह साफ प्रतीत हो रहा है। दोनों ही स्वतंत्र विभाग की टीम कोई हादसा या आंदोलन होता है,तो अपने-अपने वातानुकूलित कक्ष से निकलकर मेघनगर आकर मात्र पानी का सैंपल लेकर और मालिकों को नोटिस जारी कर,अपने-अपने गंतव्य तक रात में ही पहुंच जाते है और फिर कई माह बीत जाने के बाद जांच रिपोर्ट में क्या पाया गया..? उसका खुलासा स्थानीय प्रशासन तक को नहीं देते है,क्योंकि वे दोनों स्वतंत्र इकाई जो है।
यदि हकीकत में प्रशासन इस खतरनाक समस्या का ईमानदारी और दृढ इक्षाशक्ति से हल करना चाहती है,तो उन्हें अनिवार्यता से यह करना चाहिए ………………
1-सर्वप्रथम सीईपीटी यूनिट तक इकाइयों की उत्पादन क्षमता नुसार प्रदूषित पानी भेजने की मिनिमम सीमा लीटर के मान से तय करना चाहिए,साथ इसकी नियमित मॉनिटरिंग की व्यवस्था भी करनी चाहिए। प्रदूषित पानी की निकासी और रिसाव स्थल का निरीक्षण कर चयनित स्थानों पर तुरंत सीसीटीवी कैमरे लगा देना चाहिए। यह कार्य तो स्व-विवेक से स्थानीय प्रशासन अपने उच्च स्तर अधिकारियों से चर्चा कर हफ्ते भर में ही कर सकता है।
2-नियमानुसार इकाइयों के परिसर के प्लेटफार्म को तत्काल आवश्यक रूप से आरसीसी पक्का करवाना बेहद जरुरी है,यह कार्य भी स्थानीय प्रशासन फैक्ट्री मालिकों को कह कर बड़ी आसानी से करवा ही सकते है। ऐसा करने से काफी हद तक बारिश के समय आरसीसी के कारण प्रदूषित पानी बाहर नहीं जा पायेगा।
3-मुख्य्त: नियमानुसार उद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकलने वाली दुर्गन्ध युक्त गैस के रिसाव और धुए की जाँच तय अंतराल से करनी चाहिए और रिसाव पर नियंत्रण हेतु चिमनियों की उचाई बढ़ानी चाहिए।
4-गारिया नाले से होकर जो प्रदूषित पानी अनास नदी के पेयजल में मिलता है उसे बाईपास करने की जो योजना बनी है,उस पर संबंधित विभाग से अमल करवाया जाना चाहिए। यह कार्य भी प्रशासन अपने स्व-विवेक से कर ही सकता है।
5-मप्र प्रदूषण बोर्ड के मुख्य नियमानुसार इकाइयों को बाहरी सार्वजनिक नालियों में बहने वाले प्रदूषित पानी को एक जगह एकत्रित करके सीईपीटी यूनिट तक लिफ्ट कर ट्रीटमेंट करना अनिवार्य है,इस बिंदु पर उन्हें ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है।
उपरोक्त कदम अनिवार्यता और गंभीरता से उठाने होंगे………………
प्रशासन को भविष्य में किसी बड़े हादसे,राजनैतिक और सामजिक संगठनों के उग्र आंदोलन या विद्रोह को यदि रोकना है,तो उन्हें जरा भी समय न जाया करते हुए उपरोक्त कदम अनिवार्यता और गंभीरता से कठोर कार्यवाही तुरंत करते हुए उठाने होंगे,जिसमे किसी को भी बक्शा नहीं जाना चाहिए,ऐसा हमारा मानना है।
फ़ोन रिसीव ही नही किया……………….
गंभीर बात तो यह है कि जब इस खतरनाक गंभीर समस्या को नजर अंदाज करने वाली बात के लिये कलेक्टर नेहा मीना से उनके मोबाइल नंबर पर संपर्क कर चर्चा करनी चाही,तो उन्होंने हर बार की तरह लगातार फ़ोन रिसीव ही नही किया।
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कॉल को लगातार नजरअंदाज कर दिया………….
जब इस पर आगे आरओ पीसीबी-इंदौर एमके मंडराई से उनके मोबाइल नंबर पर चर्चा हेतु कॉल किया तो उन्होंने कॉल को लगातार नजर अंदाज कर दिया,लेकिन क्यों यह तो वे ही जाने….?
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देखकर ही मैं बता पाऊंगा………….
जांच रिपोर्ट अभी तक तो आ चुकी होगी और आगे क्या कार्रवाई की गयी है…? इसके बारे में देखकर ही मैं आपको कुछ बता पाऊंगा।
………………राजाराम भंवर-साइनटिस-पीसीबी
पीसीबी वाले ही आपको बता सकते है………………….
जांच रिपोर्ट में क्या आया और आगे क्या कार्रवाई हुई…? इस बारे में तो पीसीबी वाले ही आपको बता सकते है। सीईपीटी ट्रीटमेंट प्लांट तक प्रदूषित पानी लिफ्ट करने हेतु फैक्टरियों ने 4 रुपये प्रति लीटर के मान से सामूहिक रूप से सहमति भी दी थी। लेकिन अभी तक ना के बराबर इन्होंने दूषित पानी लिफ्ट करवाया है। दीपावली के बाद से तो आज तक स्थिति शून्य ही है। इस पर उच्चतर अधिकारियों से चर्चा करके तुरन्त कार्रवाई करेंगे।
………..एसएस थनुआ-ईई,एमपीआईडीसी
गंभीर अनियमितताएं पाई गई थी……………….
पीसीबी टीम की जांच के दौरान कुछ फैक्ट्रियों में गंभीर अनियमितताएं पाई गई थी। पीसीबी अपने स्तर पर जांच कर कार्रवाई करेगी,लेकिन स्थानीय स्तर पर हमने तीन फैक्ट्री संचालकों को नोटिस भी जारी किया था। पीसीबी पीथमपुर के क्षेत्रीय अधिकारी मनोज कुमार मंडराय ने फैक्ट्रियों का निरीक्षण किया था और उन्होंने कहा था कि जांच के बाद जो भी परिणाम आएगा,उसके आधार पर ही कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पीसीबी और एमपीआरडीसी दोनो ही स्वतंत्र इकाइयां है। आगे लेबोरेटरी जांच में क्या परिणाम आया और क्या कार्रवाई की गयी…? इस बारे में तो वे ही बता सकते हैं।
………….मुकेश सोनी-एसडीएम,मेघनगर