
आज तक बेख़ौफ़ सतत जारी है,अमानक दवाइयों का इस्तेमाल-कंपनी की दवा प्रतिबंधित,फिर भी दवाई माफियाओं को नही किसी का भी ख़ौफ़ …..
जीएमपी सर्टिफिकेट का खेल…….जन औषधि केंद्र वाली दवाइयां,सरकारी अस्पतालो में सप्लाई करवाने की व्यवस्था सरकार क्यो नही कर देती….?
अब दवा के साथ दुआ बेहद जरूरी-दमोह में चार गर्भवतियों की मौत के बाद खुला था राज,सलाइन की जगह अस्पतालों में चढ़ाया दिया गया पानी……
भोपाल/इंदौर । मुकेश परमार (भीलीभाषा ) । प्रदेश में जिलों के सरकारी अस्पतालों में भर्ती सैकड़ों मरीजों को सलाइन के नाम पर पानी चढ़ा दिया गया है। इसमें दवा के साल्ट ही नहीं हैं। इस बात का खुलासा सेंट्रल ड्रग लैब कोलकाता की रिपोर्ट आने के बाद अब सामने भी आ गया है। बता दें कि चार जुलाई को दमोह जिला अस्पताल में सीजर ऑपरेशन के बाद एक-एक करके चार महिलाओं की मौत के मामले में 9 दवाओं के सैंपल जांच के लिए सेंट्रल ड्रग्स लैब कोलकाता भेजे गए थे,उनमें से पांच की रिपोर्ट 100 दिन बाद आई और इनमें से एक एंटीबायोटिक इंजेक्शन पॉजिटिव निकला था। सीजर ऑपरेशन के बाद हुई चार गर्भवती महिलाओं की मौत के लिए यह खराब एंटीबायोटिक ही जिम्मेदार था। इसमें यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ हैं। इससे महिलाओं की किडनी खराब हो गई थी और घटिया दवाई की वजह से,वे मौत की आगोश में सो गयी। इस इंजेक्शन का इस्तेमाल केवल शासकीय जिला अस्पतालों में ही होता हैं।
आज तक बेख़ौफ़ सतत जारी है,अमानक दवाइयों का इस्तेमाल ..
आश्चर्यजनक बात तो यह है कि दमोह में गत 4 जुलाई को 4 गर्भवती घटिया दवाई की वजह से मौत की आगोश में सो गयी थी। जिन दवाइयों का अमानक होना साबित भी हो चुका है। बावजूद इसके,आज तक उन्ही प्रतिबंधित दवाई कंपनीओं की अमानक दवाइयों का इस्तेमाल प्रदेश के कई जिलों में बेख़ौफ़ सतत जारी है। इससे साफ प्रतीत होता है कि दवाई माफियाओं की सेटिंग कितनी तगड़ी है…..? गौरतलब है कि दमोह कलेक्टर ने भी दवा को घटिया माना हैं। दूसरी ओर बड़वानी सीएमएचओ ने घटिया सेलाइन की जांच करवाई थी,जिसमे वह भी घटिया स्तर की पायी गयी थी। हमारी टीम ने रेंडमली कुछ जिलों के अधिकारियों से चर्चा की तो उनका कहना था कि इस बारे में हमे कुछ भी पता नही है। यह सब सप्लाई तो भोपाल से टेंडर के माध्यम से तय होती है कि दवाइयां अस्पताल को कौन सप्लाई करेगा….? हम तो सिर्फ डिमांड भेज देते है और जो दवाइयां आती है,उसे ही इस्तेमाल करने के लिए हम बाध्य रहते है। भले ही हमे पता भी चल जाए कि दवाइ अमानक है।
दो साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने का आदेश जारी…..
दमोह जिला अस्पताल में 4 जुलाई को सीजर ऑपरेशन के बाद 4 गर्भवतियों की मौत हो गई थी। उन्हें संक्रमण रोकने के लिए सेफ्ट्राइएक्सोन एंटीबायोटिक का इंजेक्शन लगाया गया था,लेकिन इंजेक्शन ने तो महिलाओं की जान ही ले ली। हादसे के बाद दमोह जिला अस्पताल के सिविल सर्जन ने जी-लेबोरेटरीज पोंटा साहिब-हिमाचल की ओर से सप्लाई इंजेक्शन की जांच कराई थी। सेंट्रल ड्रग लैब कोलकाता की जांच में यह अमानक मिला। इसमें पार्टिकुलेट मैटर यानी अशुद्धियां मिली थी। विशेषज्ञों के अनुसार इंजेक्शन में अशुद्धियों से हाइपरसेंसिटिविटी या अन्य तरीके से किडनी फेल हो जाती है। इसी कारण से दमोह में महिलाओं का कई दिन तक डायलिसिस होने के बावजूद भी उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ था। इंजेक्शन में अशुद्धियों का अर्थ है कि निर्माण की विधि ठीक तरीके से नहीं की गयी। कुछ दिन पहले पूरे प्रदेश के शासकीय अस्पतालों में हेल्थ कॉर्पोरेशन ने जी-लेबोरेटरीज की इस दवा को दो साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने का आदेश जारी भी कर दिया है। उल्लेखनीय है कि इसी कंपनी का एक और एंटीबायोटिक जेंटामाइसिन सल्फेट भी अमानक मिला था, उसे भी जुलाई में प्रतिबंधित कर दिया गया था।
कलेक्टर ने भी माना, महिलाओं की मौत सामान्य नहीं थी….……………
उल्लेखनीय है दमोह कलेक्टर ने यह माना था कि सभी महिलाएं स्वस्थ थीं,इनकी मौत सामान्य नहीं थीं। प्रदेश के दमोह जिला अस्पताल में सीजर ऑपरेशन के बाद 4 प्रसूताओं की मौत के मामले की जांच करने हेतु उन्होंने ज्वाइंट डायरेक्टर हेल्थ को निर्देश दे दिया था। ज्वाइंट डायरेक्टर हेल्थ ने दौरा कर,कारण बताओ नोटिस जारी किए थे। जिसके बाद अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ.राजेश नामदेव को पद से हटा दिया है। स्वास्थ्य सेवाओं के वरिष्ठ संयुक्त संचालक डॉ.राजू निदारिया ने इसे लेकर आदेश जारी भी कर दिया है।
नियम के पालन को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया….
सीजर ऑपरेशन के बाद चारों महिलाओं को सेफ्ट्राइएक्सोन एंटीबायोटिक इंजेक्शन लगाया गया था। कुछ दिनों पहले आयी रिपोर्ट के बाद पूरे प्रदेश के शासकीय अस्पतालों में इस अमानक इंजेक्शन को प्रतिबंधित किया गया है। इस मामले में गंभीर लापरवाही लघु उद्योग निगम और दवा कंपनियों की निकलकर सामने भी आयी है। शासन जिस कंपनी से दवाओं की खरीदी करता है,उसके सैंपलों की जांच पहले की जाती है,उसके बाद सप्लाई होती है। लेकिन यहां पर इस नियम के पालन को लेकर अब एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। अमानक एंटीबायोटिक इंजेक्शन की सप्लाई होती रही और महिलाओं को इंजेक्शन लगते भी रहे। माना जा रहा है कि अधिकारियों के पास आयी यह जांच रिपोर्ट शायद छिपा दी गयी हैं।
सलाइन अमानक मिली……
मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने इन दोनों दवाओं को प्रतिबंधित कर कंपनियों को दो साल ब्लैक लिस्ट किया है। सलाइन में गड़बड़ी की शिकायत सीएमएचओ बड़वानी ने की थी। इसमें विजन पेरेंटेरल प्रा.लि-गोरखपुर से खरीदी रिंगर लेक्टेट, सोडियम क्लोराइड, पोटेशियम क्लोराइड, कैल्शियम क्लोराइड इंफ्यूजन में गड़बड़ी बताई गई थी। इसके बाद सेंट्रल ड्रग लैब कोलकाता में सैंपल जांच करायी गयी,इसमें यह सलाइन अमानक मिली। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि इसमें संबंधित मुख्य साल्ट नहीं है। इसके दो बैच अमानक मिले हैं
जीएमपी सर्टिफिकेट का खेल……..
जब हमारी टीम ने प्रदेश के अन्य जिलों का दौरा किया तो रोचक जानकारी हमारे सामने आयी। जानकारी नुसार जीएमपी सर्टिफिकेट वाली दवाइयां मानक गुणवत्ता से परिपूर्ण होती है। जहाँ भी हमने दौरा किया तो हमने पाया कि फ़ोटो नुसार बड़े ही चालाकी से कार्टूनों-बॉक्स पर डब्ल्यूएचओ-जीएमपी तो लिखा हुआ था। लेकिन बॉक्स के अंदर रखी मूल दवाई पर फ़ोटो नुसार जीएमपी चिन्ह की जगह बड़ी चालाकी पूर्वक गोल घेरे में कंपनी वालो ने मध्य प्रदेश गवर्मेंट-एमपीजी लिख रखा हैं। इस चीज को देखकर साफ तौर से साबित होता है कि कंपनी वाले जान बुझकर सरकार गुमराह को कर रहे है। आपको बता दे कि जीएमपी चिन्ह का मतलब -गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस होता है। इसका यह मतलब है कि दवाई या खाद्य पदार्थ उच्चतम मानक गुणवत्ता का है। मजेदार बात तो यह हैं कि शासन के अधिकारी इस बात से वाकिफ नहीं होंगे क्या…..? जिसकी संभावना ना के बराबर ही है। वे अनजान बन करके क्यों ऐसे अक्षम्य कार्य को करने दे रहे है ….? यह हमें किसी को भी समझाने की आवश्यकता नहीं है,क्योंकि यह जो पब्लिक है कि सब जानती है………… हमारा सभी से निवेदन है जेनरिक दवाइयों पर जीएमपी मार्क देखे बिना दवाइयों का सेवन न करे।
जन औषधि केंद्र वाली दवाइयां,सरकारी अस्पतालो में सप्लाई करवाने की व्यवस्था सरकार क्यो नही कर देती….?
जब इस मामले में हमारी टीम ने अलग-अलग लोगो से चर्चा कि तो अधिकतर लोगों का कहना था कि सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए तो निम्न आय वाले ही जाते है। अधिकारी,कार्यरत डॉक्टर और नेतागण अपना और अपने परिवार का इलाज तो बड़े शहर के किसी निजी अस्पताल में ही करवाते है। तो फिर उनको दवाईयों की गुणवत्ता से क्या लेना देना होता होगा….? कुछ लोगो ने बड़े ही रोषपूर्वक कहा कि यदि सरकार में थोड़ी भी मानवता है,तो सबसे पहले जिम्मेदार दवाई कंपनी के मालिक, अधिकारी और नेतागण के परिवार के सदस्यों को अस्पताल में लेटाकर यह सलाइन और इंजेक्शन लगाना चाहिए। साथ ही जिम्मेदारों का मुह काला कर,गधे पर बैठाकर नगर में घुमाना चाहिए और उनकी सारी संपत्ति भी जब्त कर लेना चाहिए। ताकि भविष्य में कोई भी ऐसी हिमाकत करने की जुर्रत न कर सके। मोदी जी ने देश में जन औषधि केंद्र खोल दिये है,तो उसी केंद्र की दवाइयां सरकारी अस्पताल में सप्लाई करवाने की व्यवस्था क्यो नही कर देते है….? जिससे आमजन को मानक दवाइयां बड़ी आसानी से उपलब्ध भी हो जाएगी और इन माफियाओं का मकड़जाल हमेशा के लिए खत्म भी हो जाएगा।
दवा खरीदी का यह है नियम…..
शासन स्तर पर दवाओं की खरीदी से पहले उनके सैंपल की जांच कराई जाती है। रिपोर्ट सही मिलने पर सप्लाई होती है। यदि बीच में गड़बड़ी सामने आती है तो सप्लाई रोक दी जाती है। इसमें सैंपल की जांच का खर्च भी जिला लघु उद्योग निगम उठाता है। इससे पहले शासन सीधे दवाओं की खरीदी करता था,जिसमें गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठते थे। अब जो जेनरिक दवाएं शासकीय अस्पतालों में बांटने के लिए आ रहीं हैं,उनकी गुणवत्ता, क्वालिटी व परफॉर्मेंस के बारे में कुछ पता नहीं चलता है।
फोटो 01-बॉक्स पर डब्ल्यूएचओ-जीएमपी का खेल
फोटो 02-जीएमपी सर्टिफिकेट मार्क
फोटो 03-गोल घेरे में मूल दवाई पर जीएमपी की जगह चालाकी पूर्वक एमपीजी
फोटो 04-विजन परेंटरल प्रा.लि-गोरखपुर से खरीदी सलाइने
फोटो 05-जी लेबोरेटरीज पोंटा साहिब-हिमाचल से खरीदे जेंटामाइसिन सल्फेट और सेफ्ट्राइएक्सोन इंजेक्शन