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स्कूलों संचालकों के द्वारा बरती जा रही लापरवाही-भारी भरकम स्कूली बैग का बोझ लादकर स्कूल जा रहे मासूम,स्वास्थ्य पर असर……

होता जा रहा बच्चों पर पढ़ाई के बोझ से ज्यादा बस्ते का बोझ……………….

एडिटर इन चीप – मुकेश परमार (भीली भाषा )

झाबुआ जिले के स्कूलों में भारी-भरकम बैग,टिफिन बॉक्स और पानी की बोतल लेकर झुकी कमर और तिरछी चाल चलते मासूम स्कूल में आते-जाते दिख जाएंगे। इन मासूमों से स्कूल बैग सहजता से उठता नहीं,लेकिन वह स्कूल बैग ढोने के लिए मजबूर हैं। शासन द्वारा बस्ते का बोझ कम करने के लिए निर्देश जारी किया गया है। लेकिन आदेश का किसी ने पालन नहीं किया है। जिससे बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

नहीं हो रहा स्कूल बैग पॉलिसी 2020 का पालन……..………..
स्कूलों की मनमानी के चलते और बेहतर शिक्षा के लिए नौनिहाल अपने कंधों पर भारी-भरकम स्कूल बैग लाद कर ले जा रहे हैं। इस बोझ को कम करने के लिए राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक धनराजू एस द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा तय की गई स्कूल बैग पॉलिसी 2020 के तहत बस्ते का वजन कम करने के निर्देश का पालन कराने के निर्देश दिए गए हैं। इसके तहत प्रतिमाह बच्चों के बस्तों की मॉनिटरिंग की जाए और निर्धारित से अधिक वजन के बस्ते लेकर बच्चे नहीं मिलना चाहिए। कक्षा 2 के बच्चों को कोई भी गृह कार्य नहीं दिया जाए। जबकि कक्षा 3 से 5वीं तक बच्चों को प्रति सप्ताह अधिकतम 2 घंटे, कक्षा 6 से 8वीं तक के छात्रों को प्रतिदिन अधिकतम 1 घंटे और कक्षा 9 से12वीं तक के विद्यार्थियों को प्रतिदिन अधिकतम 2 घंटे का ही गृह कार्य दिया जाए। कक्षा 1 से 5वीं तक के बच्चों के बस्ते का वजन 1.6 से 2.5 किलोग्राम, 6 व 7 वीं तक का 2 से 3 किलोग्राम,8वीं का 2.5 से 4 किलोग्राम तक रहे। 9वीं व 10वीं के बस्ते का वजन 2.5 से 4.5 किलोग्राम तक रहे। स्कूल के नोटिस बोर्ड और क्लास रूम में इसके चार्ट भी लगाना होगा। सप्ताह में एक दिन बैग विहीन दिवस रखा भी जाना है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा तय की गई स्कूल बैग पॉलिसी 2020 के बाद भी का पालन नहीं हो रहा है। प्राइवेट स्कूलों में इन नियमों को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए है पर आज तक वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।

निजी स्कूलों का ध्यान सिर्फ और सिर्फ  प्रचार-प्रसार पर………………….
नवीन शिक्षण सत्र शुरू होते ही अपने-अपने स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने के लिए निजी स्कूलों के संचालकों में होड़ मची रहती ही है।। नगर के छोटे-बड़े कई निजी स्कूलों अपने स्कुलो मे छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए पंपेलेंट के माध्यम से प्रचार प्रसार करते चले आ रहे हैं। हर वर्ष निजी स्कूलों पर नकेल कसने के लिए अलग-अलग नियम बनाए जाते हैं,लेकिन अब तक बच्चों के बस्तों के बोझ को कम करने के आदेश को तो सिर्फ   कागज का टुकड़ा मान कर साल दर साल उड़ाते चले आ रहे है,जिसका उनको कोई ख़ौफ़  ही नही है। प्राइमरी कक्षाओं के छोटे बच्चों के बस्ते का बोझ इतना होता है कि वह इसे उठा भी नहीं पाते हैं। इस पर तमाम प्रयासों के बाद भी लगाम नहीं लग पाई है।

भारी बैग का बच्चों की सेहत पर असर-प्रमुख समस्याएं………….
-कमर,गर्दन और कंधों में दर्द।
-हाथों में झुनझुनी आना, सुन्न हो जाना और कमजोरी आना।
-थकान और गलत पोस्चर विकसित होना।
-गर्दन और कंधों में तनाव के कारण सिरदर्द होना।
-स्पाइन का क्षतिग्रस्त हो जाना।
-स्कोलियोसिस यानी स्पाइन का एक ओर झुक जाना।
-फेफड़ों पर दबाव आने के कारण सांस लेने की क्षमता कम हो जाना।

भारी बैग से बदल जाती है बच्चों की चाल…………………
बच्चों को भारी वजन के कारण पीठ दर्द और मांसपेशियों की समस्याओं व गर्दन दर्द से जूझना,झुककर चलना,मानशिक तनाव, कंधे में दर्द, कंधे का झुकना आदि दिक्कतें हो सकतीं हैं। उनका कहना है कि बच्चों की हड्डियां 18 साल की उम्र तक नर्म होती हैं और रीढ़ की हड्डी भारी वजन सहने लायक मजबूत नहीं होती। स्कूल में पढऩे वाले बच्चों को जोड़ों में दर्द,कमर दर्द व बच्चे हड्डी रोग जैसी समस्याऐं हो रही हैं। एक कंधे पर बैग टांगे रहने से वन साइडेड पेन शुरू हो जाता है।


……..डॉ.निनामा-अस्थि रोग विशेषज्ञ-जिला अस्पताल-झाबुआ

आदेश के बाद सभी स्कूलों के संचालकों को आदेश का पालन कराने के लिए कहा गया था। अगर अभी भी आदेश के विपरीत कार्य हो रहा है तो हम तुरंत दिखवाते है।
…………….आर एस बामनिया-डीईओ-झाबुआ

SMS News (भीली भाषा)

मुकेश परमार SMS NEWS के प्रधान संपादक है , मुकेश परमार सुदर्शन न्यूज़, APN NEWS, दैनिक अख़बार मे सहित कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में कार्य कर चुके है...

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