झाबुआ

भगोरिया के रंग में रंगा आदिवासी अंचल, उल्लास, मौज-मस्ती के साथ मनाया जा रहा भगोरिया पर्व

JHBUA SMSNEWS .live========================= झाबुआ आलीराजपुर आदिवासी बहुल इलाकों में – भगौरिया पर्व है उल्लास,मौज-मस्ती,बंसत ऋतु में जब चारों और पलास के फूलखिल उठते है,धरती पर हरियाली छाई होती है,वातावरण में महुआ और ताडी की मादकता रस घोल रही होती है,खेतों में फसले पक कर खडी होती है,ऐसे अनुपम प्राकृतिक सौदर्य को देख मन झूम उठता है युवा दिलों में नई उंमगे कुचाले भरने लगती है,मद मस्त होकर आदिवासी बांसुरी की धुन पर मधुर तान छेडता है,पक्षी चहचहाने लगते है,ढोल-मांदल की थाप पर ओदिवासी नाचने लगता है,आदिवासी महिलाऐं सुरिले गीत गाने लगती है तो भगौरिया पर्व का आंनन्द और बढ जाता है। भगौरिया से लेकर तेरस तक गढं पर्व तक पूरे 21 दिन आदिवासी मौज मस्ती के आलम में सारे काम,काज,तकलिफे,भुलकर आनन्दीत रहता है, 21 दिनों के इन त्यौहारों में भगौरिया, होली, धुलेंडी, रंगपंचमी, गल, सितला सप्तमी, दशामाता और गढ के त्यौहार आदिवासी परम्परागत रूप से मनाते हैं,भगौरिया मेले में हाट-बाजार संजते है, झूले-चकरियों में झूलने का आंनद रहता है,ढोल मांदलकी थाप पर गैरे निकाली जाती है,आदिवासी बन ठनकर वाघ यंत्रों को बजाते नाचते गाते चलते है, युवा दिलों के बिच हंसी, ठिठौली, घुघंरों की छनक हर आम व खास को अपनी और आकर्षित करती है। इन त्यौहारों में अब आधुनिकता भी समाने लगी है तो राजनैतिक पार्टीयां भी इन्हे अपने राजनैतिक उपयोग के लिये इस्तेमाल करने लगे है। शासन की और से भी प्रशासनिक व्यवस्थाऐं की जाने लगी है । जिससे भगौरिया हाट बाजारों के परम्परागत स्वरूप पर असर पढने लगा है ,दूसरी और आदिवासीयों पर भी पाश्चात संस्कृति का असर होने लगा है और उनके पहनावे में परिवर्तन आने लगा है स्थानिय गितों के स्थान पर फिल्मी गाने बनजे लगे है। परम्परागत गीतों मे आदिवासी अपनी प्रेयसी से कहता है चाल थने बैलगाडी में बेठाणी ने भगौरिया भालवा ले चालूं। अर्थात चल तूझे बैलगाडी में बिठाकर भगौरिया देखले ले चलता हूं। वहीं आजकल इन गितों के साथ आधुनिक गीतों हमू काका बाबा ना पोरिया, कुंण्डालियां खेला और या कालि चिडि घणी नखराली जैसे गाने वो भी टेप रिकार्ड पर बजाये जाते है वहीं मोबाईल फोन पर भी गाने बजते है। भगौरिया हाट बाजारों में प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे पर पान की पिक थूंक कर कपउे पर या फिर गाल पर गुलाल लगाकर अपने प्रेम का इजहार करते है,लेकिन आजकल के पढे लिखे आदिवासी युवक भागने और भगाने की बात से इंकार करते है उनकी सोच से इन परम्पराओं से आदिवासी समाज की बदनामी होती है लेकिन बुजुर्ग व्यक्ति आज भी भगौरिया हाट से भागकर विवाह करने की बात मानते है,क्योंकि अक्सर पे्रमी-प्रेमिकाएं भगौरिया हाट से भागकर विवाह करते है,इन्ही कारणों से भगौरिया हांट को प्रणय पर्व भी कहां जाता है। समय-समय के साथ साथ भगौरियां मेलों की रोनकता खत्म होती जा रही है,इसकी वजह इसका राजनैतिकरण होना और मंहगाई है। भगौरिया कई बार उल्लास के साथ साथ मातम भी लाता है आदिवासी परम्परा के अनुसार भगौरिया मेलों में जब दो आपसी दुश्मन गुट आमने सामने मिल जाते है तो खून खराबा हो जाता है। भगौरिया पर्व झाबुआ, आलिराजपुर, धार, बडवानी और गुजरात के दाहोद, छोटा उदयपुर, कवाट क्षेत्रों में मनाया जाता है।]]>

SMS News (भीली भाषा)

मुकेश परमार SMS NEWS के प्रधान संपादक है , मुकेश परमार सुदर्शन न्यूज़, APN NEWS, दैनिक अख़बार मे सहित कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में कार्य कर चुके है...

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