कांगेस का गढ़ रही हैं झाबुआ विधानसभा सीट…..

SMS NEWS (भीलीभाषा )
झाबुआ में अब तक हुए 15 चुनावों में से 10 बार कांग्रेस, दो बार सोशलिस्ट और तीन बार भाजपा जीती ………
झाबुआ विधानसभा में जीतेगा तो भूरिया ही,जो भी जीतेगा वह बनेगा पहली बार झाबुआ का विधायक-देखने को मिला है इस बार तीनों विधानसभा में भूरिया का बोलबाला ,शायद जीतेंगे तो भूरिया ही…………

झाबुआ। ब्यूरो चीफ -संजय जैन।
मालवा निमाड़ का झाबुआ प्रमुख आदिवासी विधानसभा क्षेत्र है। जिले की हर सीट पर प्रत्येक दल की नजर थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,प्रियंका गांधी,राहुल गांधी और अन्य दलों के स्टार प्रचारक मालवा-निमाड़ पर अपनी नजर बनाए हुए थे। 1952 में पहले चुनाव में झाबुआ से सोशलिस्ट पार्टी की जमुना बाई विजयी रही थीं। 1957 में कांग्रेस और 1962 में सोशलिस्ट पार्टी का उम्मीदवार विजय रहा था। झाबुआ में अब तक हुए 15 चुनावों में से 10 बार कांग्रेस, दो बार सोशलिस्ट और तीन बार भाजपा जीती है। 2013 व 2018 में भाजपा लगातार जीती, लेकिन 2019 में हुए उपचुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ने यहां से भाजपा के भानु भूरिया को 27 हजार से ज्यादा मतों से हराया था।
रहा था बापू सिंह डामोर का झाबुआ सीट पर एकाधिकार ……..……………………..
1967 में झाबुआ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बापू सिंह विजयी रहे थे। 1972 में कांग्रेस की गंगाबाई विजयी रहीं थी। गंगाबाई का मुकाबला जनसंघ के प्रेमसिंह से था। 1977 से 1993 तक कांग्रेस के बापूसिंह डामोर का इस सीट पर एकाधिकार रहा, जिसे कोई दल तोड़ नहीं पाया था। बापूसिंह डामोर दो दशक से अधिक झाबुआ के विधायक रहे थे।
हासिल हुई थी दो चुनाव में लगातार भाजपा को विजय……..…………..
2003 में भाजपा के पवेसिंह पारगी ने कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व विधायक स्वरूप बाई भांवर को पराजित कर विजय प्राप्त की थी। 2008 में पुन: यह सीट कांग्रेस के जेवियर मेडा ने भाजपा के पवेसिंह पारगी को पराजित कर कांग्रेस का वर्चस्व कायम कर लिया था। 2013 और 2018 दोनों चुनाव में लगातार भाजपा को विजय हासिल हुई थी। 2013 में शांतिलाल बिलवाल और 2018 में गुमान सिंह डामोर विजयी हुए थे।
आज तक डामोर के अलावा झाबुआ विधानसभा कोई भी दोबारा नहीं जीता ………………
झाबुआ विधानसभा सीट के 1952 से 2018 तक के इतिहास को देखें तो बापूसिंह डामोर के अलावा कोई भी दूसरी बार यहां से चुनाव नहीं जीत सका हैं। बापूसिंह ने यहां से सात चुनाव लड़े और छह में विजयी रहे थे। 1972 में वे निर्दलीय मैदान में थे और उन्हें 2508 मत प्राप्त हुए थे।
बागी हमेशा बिगाड़ते हैं गणित……………………
झाबुआ में कुछ अवसरों पर बागी उम्मीदवार ने हार-जीत के समीकरण ही बदल दिए थे। 2013 में कांग्रेस के जेवियर मेड़ा को भाजपा के शांतिलाल बिलवाल ने 15,858 वोटों से पराजित किया था। कांग्रेस से नाराज और बागी उम्मीदवार रही कलावती भूरिया को 18,311 मत मिले थे। यदि ये मत कांग्रेस को मिलते तो गणित कुछ और ही होता। इसी तरह 2018 में भाजपा के गुमान सिंह डामोर ने कांग्रेस के डॉक्टर विक्रांत भूरिया को 10,437 मतों से पराजित कर दिया था। तब कांग्रेस से नाराज होकर निर्दलीय मैदान में जेवियर मेड़ा बागी उम्मीदवार थे। उन्हें 35,943 मत मिले थे, यदि ये मत कांग्रेस के खाते में जाते जो परिणाम दूसरा ही होता।
जिले में प्राय: नोटा का प्रयोग अधिक……………..
2019 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भाजपा के भानु भूरिया को 27,804 मतों से पराजित किया था। झाबुआ जिले में प्राय: नोटा का प्रयोग अधिक होता है। वर्ष 2013 में 5,128 और 2018 में 6,188 मतदाताओं ने नोटा का उपयोग किया था। लोकसभा चुनाव 2019 में झाबुआ विधानसभा क्षेत्र से 5727 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया था।
विक्रांत भूरिया का भानु भूरिया से मुकाबला-जो भी जीतेगा वह बनेगा पहली बार झाबुआ का विधायक……………..
इस बार विधानसभा चुनाव 2023 में झाबुआ में कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ.विक्रांत भूरिया और भाजपा से भानु भूरिया मैदान में हैं। कांग्रेस से बागी होकर जेवियर मेड़ा ने फॉर्म तो भरा था पर वापस ले लिया था। वहीं,भाजपा से नाराज होकर बागी पूर्व नपा अध्यक्ष धनसिंह बारिया और किसान मोर्चे के अध्यक्ष कलमसिंह भाबोर निर्दलीय मैदान में हैं। जो भी जीतेगा वह पहली बार झाबुआ का विधायक बनेगा। अब देखना होगा कि बागी किसको कितना नुकसान पहुंचा पाते हैं…..?
-सट्टे बाजार में कयास ……
इस विधानसभा चुनाव को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। सट्टा बाजार में कांग्रेस के डा. विक्रांत भूरिया का भाव 50 पैसे तथा भाजपा के भानू भूरिया का भाव 60 पैसे बताया गया ओर निर्दलीयो की किसी ने भी जीत होना नही बताया। इस तरह हमेशा केी तरह सट्टा बाजार ने भी पूर्वानुमान को बल दिया है कि इस बार चुनाव में भाजपा तथा कांग्रेस में कड़ा मुकाबला है।
देखने को मिला है इस बार तीनो विधानसभा में भूरियाओ का बोलबाला...
इस बार जिले की तीनो विधानसभा में भूरियाओ का बोलबाला देखने को मिला है। जिले की तीनो विधानसभा में भूरियाओ को बोलबाला तो है ही,वही दूसरी ओर पहली बार बाप पार्टी द्वारा तीनो विधानसभा में अपने प्रत्याशी उतारने से राजनैतिक पंडितों का गणित गड़बड़ा गया है। झाबुआ विधानसभा की बात करे तो यहाँ कांग्रेस का एक भूरिया तो दूसरा भूरिया भाजपा का प्रत्याशी चुनाव के मैदान में था। थांदला विधानसभा की बात करे तो यहाँ कांग्रेस का एक भूरिया प्रत्याशी मैदान में था। पेटलावद विधानसभा की बात करे तो यहाँ से भाजपा की एक भूरिया प्रत्याशी मैदान में थी। तीनो विधानसभा की बात करे तो कूल 4 भूरिया 1 मेड़ा और 1 भाबर प्रत्याशी चुनाव के दंगल में अपना जौहर दिखाने के लिए खड़े थे। अब देखना यह है की चर्चाओं में तीनो विधानसभा में भूरियाओ का जो बोलबाला चल रहा था,3 दिसम्बर को परिणाम आने के बाद वे कितना गुल खिला पायंगे…..?